अल्मोड़ा :जागेश्वर धाम में शुरू हुआ हिमपात, 2022  की पहली बर्फ़बारी, देखिये इस वीडियो में

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अल्मोड़ा : विश्व प्रसिद्द भोले भगवन शिव शंकर की घाटी जागेश्वर धाम में इस सीजन  का पहला हिमपात शुरू हो गया है. ऐसे में ठण्ड से इलाके में जनजीवन अस्त ब्यस्त हो गया है. वहीँ लोग  घर में दुबक  कर बैठ  गए  हैं लेकिन आनंद ले रहे हैं हिमपात का. ऐसे में सड़कों पर चलना भी रिस्की होता है, क्योँकि फिसलन का डर बना रहता है हमेशा.  ऐसे में 2022 का पहला हिमपात शुरू हो गया हैं आज जागेश्वर धाम में.उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले में पड़ता है जागेश्वर धाम. मंदिर के चारों तरफ बर्फ गिरी हुई है. वहीँ तापमान काफी नीचे आने से लोग घरों में ही रहना पसंद कर रहे हैं.जागेश्वर मंदिर से पंडित नीरज भट्ट के अनुसार कल रात से मौसम काफी सर्द है ऐसे में आज सुबह हिमपात शुरू हो गया ऐसे में ठण्ड बढ़ गयी है, लोग अंगीठी, आग सेकने में हैं आज दिन भर.
video में देखिये हिमपात –
https://www.youtube.com/watch?v=CaR3YGUECFY
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 35 किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतताप्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग 240 मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे 224 मंदिर स्थित हैं।
कहाँ है जागेश्वर धाम के मंदिर।
उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे।  मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग 240 छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी shilaon से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।

 

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पौराणिक सन्दर्भ
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं.

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