पिता हीरा ब्यापारी, करोड़ों का व्यापार छोड़ 9 साल उम्र की में ले लिया बेटी देवांशी ने संस्यास
देवांशी ने न केवल धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। भरतनाट्यम, योगा में भी वह एक्सपर्ट है'

अरविन्द भाई शर्मा की रिपोर्ट-
सूरत: कहते हैं पैसा बहुत कुछ होता सब कुछ नहीं…इंसान पैसे, सोहरत के लिए पूरी जिंदगी लगा देता है फिर भी उसे नसीब नहीं होता है.अगर नसीब हुआ तो उसे वह रसूख की तरह प्रयोग में लाता है. सूरत में केवल 9 साल की हीरा ब्यापारी की बेटी ने संस्यास ले लिया. सूरत के हीरा व्यापारी संघवी मोहन भाई की पोती और धनेश-अमी बेन की 9 साल की बेटी देवांशी संन्यास ले लिया है। देवांशी का दीक्षा महोत्सव वेसू में 14 जनवरी को शुरू हुआ।देवांशी ने 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में जैनाचार्य कीर्तिश्यासूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली।
इसी के साथ बुधवार को सुबह 6 बजे से उनकी संन्यासी जीवन शुरू हो गया है।देवांशी ने 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौजूदगी में जैनाचार्य कीर्तिश्यासूरीश्वर महाराज से दीक्षा ली। इसी के साथ बुधवार को सुबह 6 बजे से उनकी संन्यासी जीवन शुरू हो गया है। देवांशी के संन्यास के दौरान सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे। इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी।देवांशी ने 8 साल की उम्र तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व कई जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा।देवांशी की करें तो वे 5 भाषाएं जानती है। इसके अलावा देवांशी संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। जनकारी के मुताबिक़, देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।देवांशी के संन्यास को लेकर उनके माता-पिता अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि ‘उनकी बेटी ने कभी टीवी देखा नहीं, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तेमाल नहीं किया। न ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने। देवांशी ने न केवल धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। भरतनाट्यम, योगा में भी वह प्रवीण है’।पिता के अनुसार देवांशी जब 25 दिन की थी तभी से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया। ऐसे में 4 महीने की होने के बाद देवांशी ने रात्रि भोजन त्याग दिया था। उन्होंने 8 महीने की होने पर रोज त्रिकाल पूजन की। वही जब देवांशी 1 साज की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप करती है। अब देवांशी ने अपने करोड़ों के व्यापार को त्यागकर दीक्षा ले ली है।इस तरह से बहुत कम देखने को मिलता है. लेकिन इतना सब कुछ हो कर त्यागना और जीवन भक्ति में लगा देना ऐसी सोच समझ गिने चुने लोगों को ही आती है.