देहरादून : गुरु को टक्कर दे गया चेला ! रामनगर सीट गई पर बेटी अनुपमा रावत का टिकट करा लिया पक्का, एक परिवार एक टिकट का फॉर्मूला फेल ?
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देहरादून : हरीश रावत अब हल्द्वानी के बगल में लालकुवां से लड़ेंगे चुनाव. मतलब नैनीताल जिले से. हल्द्वानी सबसे बड़ी सीट मानी जाती है जहाँ से इंदिरा हृदयेश लड़ा करती थी. हल्द्वानी तो नहीं गए लेकिन बगल वाली सीट लालकुवां से अंतिम समय संध्या डालाकोटी का टिकट निरस्त कर हरीश रावत को दे दिया गया. राजनीती क्या क्या नहीं कराती है….संध्या डालाकोटी के दिल से पूछिये क्या बीत रही होगी !
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खैर, सीट बदलना रणनीति का हिस्सा थी या फिर हालात ऐसे बन गए थे की अपना टिकट भी असमंजस में डाल दिया. कांग्रेस के इस समर्पित सिपाही और उत्तराखंड के इस कद्द्वार नेता को आखिर रामनगर सीट छोड़नी पड़ी. तब, जब हरीश रावत ने ऐलान कर दिया था की 28 को नामांकन करूंगा रामनगर से, बाकायदा ऐलान फेसबुक और ट्विटर के मैदान पर हुआ. पहली लिस्ट में रामनगर की सेफ सीट हासिल तो कर ली लेकिन उनके राजनैतिक शिष्य और पूर्व विधायक रणजी सिंह रावत बागी हो गए। साफ कह दिया यहीं से लड़ूंगा सल्ट और कहीं से नहीं। वो भी तब जब वो यहां से हारे हुए उम्मीदवार हैं। पिछले चुनाव में भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट ने उन्हें हरा दिया था। चेले की दंबगई देख कांग्रेस ने आधी रात नई लिस्ट जारी कर दी। हरीश रावत को लालकुंआ भेज दिया। खैर बड़े नेता होते हैं वही हैं जो जहाँ कहे से वहां से लड़ के दिखा दे. हरीश रावत उनमें से एक हैं इसमें कोई दो राय नहीं है. जीत हार बाद का मसला है. एक झटके में कोल्ड से हॉट सीट बन गयी लालकुंवा.
दूसरा हां, उनकी नाराजगी कम करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने उनके उस फेसबुक पोस्ट का मान रखा जिसमें उन्होंने लिखा था ‘अब थोड़ा मुझे अपने बेटे-बेटियों, जिन्होंने मेरी ही गलतियों वश राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिए या मेरी ढिलाई समझ लीजिए, प्रोत्साहन तो मैंने कभी दिया नहीं, लेकिन मेरी ढिलाई के कारण वे भी इस काम में लग गए, उनकी चिंता होती है, क्योंकि उनके प्रति भी मेरा दायित्व है।’ सीएम पद के दावेदार हरीश रावत के परिजनों को टिकट का विरोध हो रहा था। लेकिन नई लिस्ट में हरिद्वार ग्रामीण सीट से उनकी बेटी अनुपमा रावत को कांग्रेस का उम्मीदवार बना दिया गया है। राजनीतिक पंडित कह रहे थे एक परिवार एक टिकट पर कांग्रेस भी चल पड़ी लेकिन नहीं अब ऐसा नहीं है. पिता-पुत्री को टिकट देने से ये साफ़ हो गया है. कांग्रेस में अभी भी है. शायद इससे हरीश रावत की नाराजगी दूर हो जाए। वहीं रणजीत सिंह रावत को भी रामनगर सीट नहीं दी गई है ताकि कोई गलत मैसेज न जाए। पार्टी ने उन्हें सल्ट सीट से ही टिकट दिया है। रणजीत सिंह रावत ने कहा था कि उन्होंने रामनगर सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली थी। गुरु चेले में विवाद न हो, विद्रोह न हो इसलिए सुरक्षित रास्ता निकला गया. हरीश रावत इस मामले में मात खा गए इसमें दो राय नहीं है.
पांच बार सांसद रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जब विजय बहुगुणा के खिलाफ नाराजगी के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब धारचूला का विधानसभा उपचुनाव उन्होंने जीता था। 2017 में वो हरिद्वार ग्रामीण और किच्चा दो क्षेत्रों से लड़े और दोनों ही चुनाव हार गए। 1980 से लेकर 1999 तक उन्होंने अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र का लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व किया। 2009 में हरिद्वार से जीते और 2019 में अजय भट्ट ने उन्हें नैनीताल सीट से हरा दिया। भिन्न-भिन्न सर्वे रिपोर्ट की बात करें तो अभी भी हरीश रावत प्रदेश के सबसे चेहते मुख्यमंत्री हैं. अब 10 मार्च को किसका राजयोग घोषित होता है इसके लिए आपको कुछ दिन इन्तजार करना पड़ेगा.