14 TV एंकर्स का बहिष्कार: देर से लिया गया फैसला

नॉएडा : (राजेश बैरागी) हालांकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समाचार चैनलों पर होने वाली सजीव बहसों से मेरा बहुत नाता नहीं है। यदि कभी कभार किसी स्थानीय समाचार चैनल पर किसी बहस में शामिल होने का अवसर मिलता है तो मैं जवाब देने से पहले अपने प्रतिवादी को ध्यानपूर्वक सुनना पसंद करता हूं और एंकर के किसी भी एजेंडे को महत्व नहीं देता।
शब्दकोश में तलाशने पर TV एंकर के कई अर्थ मिले। यह नाव या जलपोत को बांधने, किसी उद्देश्य के लिए बने दल को दिशा देने या जकड़ने के यंत्र के तौर पर जाना जाता है। पिछले एक लंबे समय से समाचार चैनलों पर शाम होते होते बहस के नाम पर अखाड़ा चलाने वाले चैनल कर्मियों को एंकर क्यों कहना चाहिए? ये न तो देश की राजनीतिक नाव को नदी में बहने से रोकने का कोई काम कर रहे हैं और न इनका उद्देश्य कोई दिशा देना ही है। ये किसी प्रतियोगिता के दौरान स्टेडियम में बैठी उस उन्मादी भीड़ के जैसे हैं जिसका उद्देश्य अपने पक्ष के खिलाड़ी को जिताना होता है,चाहे वह अच्छा खिलाड़ी न हो तो भी। कायदे से तो इन्हें अपने पक्ष के खिलाड़ी को रिंग में उतारने की जगह खुद ही रिंग में उतर जाना चाहिए। कोई सरकार या प्रशासनिक व्यवस्था प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त नहीं कर सकती है यदि प्रेस अपनी स्वतंत्रता को बेचने अथवा गिरवी रखने को उत्सुक न हो। विपक्षी दलों और उनके गठबंधन की इमानदारी की चर्चा की यहां कोई आवश्यकता नहीं है। सभी एक जैसे हैं या एक से बढ़कर एक हैं। यहां प्रश्न मीडिया की इमानदारी का है। विपक्ष ही नहीं किसी भी पक्ष को इन फालतू की बहसों में शामिल नहीं होना चाहिए। ये मीडिया की विकृति है। इसके उपचार की आवश्यकता है।बहिष्कार से उपचार कैसे हो सकता है।