भुवेनश्वर : परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती डी लिट की मानद उपाधि से हुए सम्मानित ओडिशा में
कलिंगा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सांइसेज का तीसरा वार्षिक दीक्षांत समारोह, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती डी लिट की मानद उपाधि से हुए सम्मानित

- कलिंगा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सांइसेज़- विशेष रूप से जनजातीय छात्रों हेतु प्रथम विश्वविद्यालय
सूत्र वाक्य ’’शिक्षा विद्यार्थियों का तीसरा नेत्र’’ - कलिंगा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सांइसेज़ के संस्थापक प्रोफेसर अच्युता सामंत द्वारा सभी अतिथियों का भव्य व दिव्य अभिनन्दन
- छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन, ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, मुख्य फिटनेस अधिकारी व एलेवांडी, सिंगापुर बोर्ड के अध्यक्ष सोपनेंदु मोहंती, डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित
- इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, राज्यपाल छत्तीसगढ़ विश्वभूषण हरिचंदन, राज्यपाल ओडिशा रघुबर दास, ग्रैमी पुरस्कार विजेता डा रिकी जी केज, पूर्व सीईओ, नीति आयोग, जी-20 शेरपा, भारत सरकार अमिताभ कांत का सान्निध्य व उदबोधन
- चासंलर सत्य एस त्रिपाठी, प्रो चांसलर प्रो डा अमरेश्वर गल्ला, रजिस्ट्रार डा प्रशांत कुमार राउट्रे, प्रोफेसर दीपक कुमार बेहरा ने किया अतिथियों का अभिनन्दन
ऋषिकेश/भुवनेश्वर : परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती को कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज ने डी लिट की मानद की उपाधि प्रदान की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कलिंगा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सांइसेज के तीसरे दीक्षांत समारोह में सहभाग कर हजारांे-हजारों की संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुये कहा कि कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ को 18वें एनर्जी ग्लोब वर्ल्ड अवार्ड 2017 से सम्मानित किया गया था,उस समय इस प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाला यह भारत का एकमात्र संगठन था। वास्तव में यह आप सभी के संयुक्त प्रयास का अद्भुत उदाहरण है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि केआईएसएस विश्वविद्यालय का सिद्धान्त है शिक्षा से भूख मिटाना परन्तु जिस प्रकार इस विश्वविद्यालय ने वैश्विक स्तर पर भारत को स्थापित किया है वह वास्तव में अनुकरणीय है। शिक्षा के इस मन्दिर के माध्यम से आदिवासी/जनजातीय समुदायों में न केवल शिक्षा की भूख जागृत हुई है बल्कि जनजातीय संस्कृति, अध्यात्म, दर्शन, पर्यावरण, प्रोद्यौगिकी प्रबंधन, भाषा, विरासत, कानून आदि विभिन्न धाराओं का अध्ययन, स्नातक, मास्टर्स, पीएचडी व एम फिल करवाकर शिक्षा की रोशनी फैलायी है और दिलों में शिक्षा का दीप प्रज्वलित किया है वह अद्भुत कार्य है। साथ ही भारत की प्राचीन संस्कृति को जीवंत रखने, युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों, मूल्यों, संस्कारों व पर्यावरण से जोड़ने हेतु प्रेरित किया जा रहा है ताकि अपनी संस्कृति को जीवंत रखा जा सके।
स्वामी ने युवाओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि समस्याओं और चुनौतियों से ’भागो नहीं बल्कि जागो’, उनका सामना करो और आगे बढ़ो। युवा अपने कार्यो के प्रति लगनशील, निष्ठावान, कर्तव्यनिष्ठ और ऊर्जावान बनें, समय का उपयोग करें, अवसरांें को पहचाने, एजूकेटेड, अपडेटेड और अपलिफ्टेड भी बनंे तथा अपना आध्यात्मिक और सांस्कृतिक (स्पिरिचुअल व कल्चर) पक्ष मजबूत रखें। वास्तव में आज भारत को ऐसे ही साहसी और फोकसड्, एकाग्रता से पूर्ण नौजवानों की जरूरत है। जो चट्टानों से टकराये उसे तूफान कहते हैं और जो तूफानों से टकराये उसे नौजवान करते हैं, ये तभी सम्भव है जब हमारा ध्यान केन्द्रित हों, भीतर से मजबूत हों और एकाग्रचित हों और ये सभी गुण अपनी जड़ों, संस्कृति व संस्कारों से जुड़कर रहने पर आते हैं।
किसी भी राष्ट्र के नौजवान जागरूक हों, अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठावान एवं समर्पित हांे, तो वह देश उन्नति के शिखर छू सकता है इसलिये युवाओं को अपनी सफलता के साथ देश के प्रति समर्पण की भावना विकसित करना नितांत आवश्यक हैै। आज के युवाओं को लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा देने के साथ ही भविष्य की चुनौतियों से निपटने, आध्यात्मिक बल एवं शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करेगा क्योंकि किसी देश की पहचान, योग्यताओं तथा क्षमताओं में वृद्धि उस देश के नागरिकों के शिक्षा के स्तर से ही होती है। भारत सहित पूरे विश्व को ऐसे युवाओं की जरूरत है जो धर्म को साहित्य में न खोजंे बल्कि प्रत्येक प्राणी के हृदय में अनुभव करें। करूणावान युवा जो हृदय से पवित्र हों, धैर्यवान हांे और उद्यमी हांे वही एक बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं और यही गुण स्वामी विवेकानन्द जी भी युवाओं में देखना चाहते थे क्यांेकि सशक्त युवा ही सशक्त समाज का निर्माण कर सकता है। जब युवा सशक्त होगा तो देश समृद्ध होगा।
स्वामी ने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि युवा एक्टिव व इफेक्टिव बनें, एजूकेटेड एवं कल्चर्ड बनें और एक स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करें। ’’अहम और वहम से वयं की ओर, आई (मैं) से व्ही (हम) की ओर तथा मेरे लिये क्या नहीं बल्कि मेरे थू्र क्या इस दिशा की ओर बढने का संकल्प लें, यही आपके लिये भी और देश के लिये भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा मंे एक महत्वपूर्ण कदम होगा, ’’इदं राष्ट्राय स्वाहः इदं न मम।’’ कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज भुवनेश्वर, ओडिशा में स्थित एक उच्च शिक्षा संस्थान डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी है। इसकी स्थापना 1993 में एक आवासीय आदिवासी स्कूल के रूप में की गई थी और 2017 में यह एक डीम्ड-टू-बी-यूनिवर्सिटी बन गया। वास्तव में यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।? इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने सभी अतिथियों पर विश्वविद्यालय पदाधिकारियों को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया।