(लेख) राष्ट्रप्रथम- कश्मीर : सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है!

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 राष्ट्रप्रथम-
कश्मीर : सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है!
        ~पार्थसारथि थपलियाल~
कश्मीर में जब भी कोई आतंकवादी घटना कारित होती है तो मीडिया से जानकारी मिलती है कि प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। यह कभी नही सुना कि पहले से कड़ी की गई सुरक्षा व्यवस्था को ढील कब दी गई? अगर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी होती है तो निरपराध लोगों की जघन्य हत्याएं क्यों होती हैं? पिछले एक महीने में 5 लक्षित हत्याएं (Target killing) हो गई। 5 अगस्त 2019, जिस दिन धारा 370 को खत्म करने का निर्णय भारतीय संसद ने किया था तब से अब तक 96 निर्दोष लोगों को मारा गया। इनमें मुस्लिम भी शामिल हैं। इसी दौर में 366 आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने ढेर भी किया। जब सुरक्षा बलों ने सीमाओं से आतंकियों के इरादे तोड़े तो एक हाई ब्रीड किस्म का आतंकवाद पैदा किया गया है। ये आतंकी स्थानीय सामान्य नागरिकों की तरह सामान्य वेशभूषा में होते है। ये बड़े हथियारों की बजाय पिस्तौल जाति के हथियार से काम करते हैं। अब तक लक्षित हत्याओं में 14 गैर कश्मीरी गैर मुस्लिम लोग मारे गए। पुख्ता पहचान के बाद ही ऐसी हत्याएं हुई हैं।
1990 में जब कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया गया था तब आतंकियों ने रलीव, चलीव और गलीव के पोस्टर हिंदुओं के घरों पर चस्पा किये गए थे। करीब 5 लाख कश्मीरी पंडितों को बदहवासी में अपने घर छोड़ने पड़े थे। वे लोग जो बहुत सम्पन्न भी थे आज भारत के कई शहरों में शरणार्थी जीवन बिता रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कुछ प्रयास किये थे। उन प्रयासों में से जो शब्द बचे हैं-जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत। ये केवल शब्द रह गए। इनसे संबंधित भावनाएं झेलम नदी में बहुत पहले बह चुकी हैं।
हाल की घटनाओं पर नज़र डालें तो माखन लाल बिन्द्रू जो श्रीनगर में फार्मेसिस्ट थे, सुपिन्दर कौर जो श्रीनगर में प्रिंसिपल थी व उनका सहयोगी दीपचंद, राहुल भट्ट जो बडगाम जिले को चदूरा तहसील कार्यालय में कार्यरत थे, सांबा जिले की रजनीबाला जो कुलगाम में अध्यापिका थी, और 2 जून 2022 को कुलगाम  जिले की अरह मोहनपुरा शाखा में एक सप्ताह पूर्व प्रबंधक का पदभार ग्रहण किये, गंगानगर (राजस्थान) के विजय कुमार की लक्षित हत्या की गई। श्री विजय कुमार की फरवरी 2022 में शादी हुई थी। इस हत्या के बाद श्रीनगर में कार्यरत लगभग 5 हज़ार गैर मुस्लिम कर्मचारियों ने सड़कों पर जबरदस्त प्रदर्शन किया। वे मांग कर रहे थे कि उनका ट्रांसफर जम्मू कर दिया जाय, क्योंकि उनका जीवन कश्मीर में सुरक्षित नही है। बैंक प्रबंधक विजय कुमार की हत्या के बाद फिर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। उपराज्यपाल ने अफसरों की बैठक बुलाई। दिल्ली के नार्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक ने भी यही कर्मकांड किया एक बार फिर सुरक्षा कड़ी कर दी गई।
मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर इस परिस्थिति पर फिट बैठता है-
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे ज़ुल्फ़ के सर होने तक।।
(लेखक के ये निजी विचार हैं)

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