(लेख) संस्कृति- पितृपक्ष- आभार भाव प्रकटन की पंचबलि (पार्ट 4)

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संस्कृति-

पितृपक्ष- आभार भाव प्रकटन की पंचबलि (4)
~पार्थसारथि थपलियाल~

श्राद्ध उसी व्यक्ति का किया जाता है जिसनें पंचतत्वों से बनी देह रूप में जन्म लिया और उसकी मृत्यु हुए एक साल बीत चुका है। अर्थात उसकी बरसी हो चुकी है। उसके बाद जो पितृपक्ष आएगा, उस समय व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध मनाया जाएगा। श्राद्ध में पंचबलियों (पंचग्रास) का बड़ा महत्व है। पिंडदान/तर्पण आदि के बाद श्राद्ध के लिए तैयार भोजन में से देवता, गाय, कौआ, कुत्ता और चींटी को अलग अलग पत्तों में/ पत्तल या दोने में पकाया हुआ भोजन का थोड़ा थोड़ा अंश दिया जाता है। इसे बलि कहते हैं।

एक जिज्ञासु नें जानना चाहा कि पंचबलि ही क्यों महत्वपूर्ण हैं? इसके लिए उन धार्मिक संदर्भों को जानने के लिए कुछ शास्त्रीय पन्ने पलटे और उसमें से जो मैं उपयुक्त संदर्भ पा सका वह पाठकों के समक्ष है।
मानव देह पांच तत्वों से मिलकर बनी है। इन पांच तत्वों का वर्णन सांख्य दर्शन के आचार्य कपिल ने खांख्यकरिका में किय्या है। महाभारत में भी इनका विस्तार है। ये पंचतत्त्व हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इनके बारे में रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में भगवान रामचंद्र नें बालि वध के बाद जब बालि की पत्नी तारा को विलाप करते हुए देखा तो उन्होंने समझाया-

छिति जल पावक गगन समीर।पंच रचित अति अधम सरीरा।

यहां से बात समझने योग्य है। कि सनातन संस्कृति समग्रता को किस तरह लिए हुए है। तैतरीय उपनिषद में बताया गया है कि समस्त ब्रह्मांड शून्य में में है। शून्य ही आकाश है। भारतीय संस्कृति ने आकाश को भी तत्व माना। (अधिक जानकारी के लिए ऋग्वेद का नासदीय सूक्त देख सकते हैं।) आकाश के बाद वायु तत्व, अग्नि, जल, और पृथ्वी तत्व हैं। पृथ्वी से औषधि, औषधि से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष/ शरीर उत्पन्न होता है। मनुष्य का शरीर जिसमें रक्त, हड्डियां, मांस, वसा आदि हैं, अन्न से बने है। यह शरीर का 12 प्रतिशत भाग पृथ्वी तत्व है। शरीर का लगभग 72 प्रतिशत भाग जल तत्व है। जल तत्व में लार, रक्त, वीर्य, मूत्र, पसीना आदि शामिल है। मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, किडनी, त्वचा, मांस, हड्डी में जल तत्व होता है। हमारे शरीर में वायु तत्व के बिना शरीर संचालित नही हो सकता है। ऑक्सीजन, कार्बन और हाइड्रोजन गैसें शरीर मे विभिन्न क्रियाएं करते हैं। वायु के विभिन्न स्वरूप आयुर्वेद के ग्रंथों में पढ़ने को मिलते हैं- व्यान,
प्राण वायु, उदान वायु, समान वायु, अपानवायु। शरीर में वायु तत्व 6 प्रतिशत पाया जाता है। अग्नि तत्व शरीर को ऊर्जा/शक्ति देता है। भूख, प्यास, नींद का कारक अग्नि तत्व है। जठराग्नि भोजन को पचाने उसके व्यवहार में परिवर्तन लाने का काम करती है। शरीर में अग्नि तत्व 6 प्रतिशत होता है। मानव देह में 4 प्रतिशत आकाश तत्व होता है। हमारे अमाशय, गुर्दा, फेफड़ा, गुदा, आंतें जहां भी रिक्त स्थान है वह आकाश तत्व है। आकाश तत्व ध्वनि का कारक भी है।

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पंचतत्त्व उनके गुण, प्रवृति, और भाव इस प्रकार से हैं।
आकाश तत्व- प्रवृति-अहंकार, गुण- ध्वनि, भाव- प्रसन्नता
वायु तत्व- प्रवृति- लगाव, गुण-स्पर्श, भाव- प्रसन्न, स्वास्थ्य अग्नि तत्व- प्रवृति- गुस्सा, गुण-रूप, भाव शक्ति/उर्जा
जल तत्व- प्रवृति-लालच, गुण-रस, भाव-शक्ति/इच्छा
पृथ्वी तत्व- प्रवृति-लोभ, गुण-गंध, भाव-सुस्त, लगाव
इन पांच तत्वों के पांच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं- कान, त्वचा,आंख, जीभ, और नाक। पंचतत्वों के साथ इनकी व्यवस्था-
आकाश तत्व- ज्ञानेन्द्रिय-कान, कार्य-सुनना
वायु तत्व- ज्ञानेन्द्रिय- त्वचा, कार्य- स्पर्श
अग्नि तत्व- ज्ञानेन्द्रिय-आंख, कार्य-देखना
जल तत्व- ज्ञानेन्द्रिय-जीभ, कार्य-स्वाद लेना
पृथ्वी तत्व- ज्ञानेन्द्रिय-नाक, कार्य- सूंघना।

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इन पंचतत्वों का आभार व्यक्त करने के लिए उनके प्रतिनिधि के रूप में गाय, कौआ, चींटी, कुत्ता और चींटियों को गाय बलि, कौआ बलि, स्वानबली, देवबलि और पीपलादिबली दी जाती है। देवता, आकाश तत्व के प्रतीक हैं, कौआ, वायु तत्व के प्रतीक, चींटी, अग्नि तत्व के प्रतीक, स्वान (कुत्ता), जल तत्व के प्रतीक और गाय, पृथ्वी तत्व के प्रतीक मानी जाती है।
सनातन संस्कृति में गाय में सभी देवताओं का वास माना जाता है। मनुष्य के जन्म से मरण तक गाय सदैव मनुष्य के काम आती है। मोक्ष के लिए वैतरणी नदी पार करने में भी गाय (की पूछ) का योगदान रहता है। यमराज के श्याम और सबल नामक दो कुत्ते हैं, जो उनके साथ रहते हैं। कौआ (काक) को पितर के रूप में जाना जाता है। चींटियां सामूहिकता के प्रतीक हैं। अनेक लोगों के सहयोग से जीवन चलता है उनका भी आभार है। ऐसी मान्यता भी है कि ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में देवता और पितर भी उनके साथ भोजन करते हैं।

ऐसा केवल सनातन संस्कृति में ही संभव है कि न केवल भविष्य को सुधारें बल्कि भूतकाल के प्रति भी सम्मान रखें, स्मरण रखें। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखें, इस संस्कार को नई पीढ़ी को दें।जि ज्ञासु महोदय संभवतः संतुष्ट होंगे कि पंचबलि का क्या महत्व है?

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