ऋषिकेश : ABVP ने किया याद रानी दुर्गावती को, 500वीं जन्मजयंती पर पुष्पांजलि अर्पित कर, जानिए उनके बारे में

ऋषिकेश : ABVP ने किया याद रानी दुर्गावती को, 500वीं जन्मजयंती पर पुष्पांजलि अर्पित कर।हमारे देश में कई विरांगना हुई हैं। रानी दुर्गावती भी उन्हीं में से है। जो अपने अदम्य, साहस के लिए धर्म को बचाने के लिए जानी जाती हैं।
गुरुवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ऋषिकेश श्री देव सुमन विश्वविद्यालय परिसर में छात्र छात्राओं के मध्य रानी दुर्गावती की 500वीं जन्मजयंती में पुष्पांजलि कार्यक्रम कर याद किया । जिला संयोजक ने रानी दुर्गावती को याद करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपने गोंडवाने के राज्य को बचाने के लिए मुगलों को धूल चटा दी और अंतिम सांस तक भी युद्धक्षेत्र को नही छोड़ा, जिला संगठन मंत्री मनीष राय ने कहा कि आज धर्म एवं राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान देने वाली, अदम्य साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति, महान वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती है। रानी दुर्गावती की जयंती पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है ।
नगर मंत्री आकाश उनियाल ने अपने उत्तफखण्ड की भी वीरांगना महिलाओं के जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में नगर सह मंत्री राजू, तहसील संयोजक चेतन कपूरवान, छात्र नेता अनिरुद्ध शर्मा, राखी मंडल, निधि,इशिता पंत,दिया,यश गर्ग,शिवम, पवन जाटव, राजेश, प्रिंस, अक्षय, कृष्ण, राहुल आदि युवा कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
रानी दुर्गावती के बारे में-
रानी दुर्गावती मडावी गोंडो का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया आदिवासी सैनिक रानी दुर्गावती के लिए अपनी जान दे दी। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी।
अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने पेट में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं आदिवासी रानी मर गई लेकिन किसी और की सत्ता के कदम नहीं छुआ। महारानी दुर्गावती चंदेल ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में स्थित जनजाति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।
रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया | भारत सरकार ने 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया। जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया | मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी आदिवासी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है। रानी दुर्गावती की याद में कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है।